
पतंजल योग पथ
पतंजल योग पथ अर्थात महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग का पथ व योग दर्शन यह एक ऐसा पथ है जिसपर निर्भर होकर दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति पूर्णसुख, शक्ति व आनंद को प्राप्त कर सकता है । यह कोई अलग धर्म सम्प्रदाय मत-पंथ नही है जीवन जीने कि कला है इस पथ पर चल कर हर मानव अध्यात्मिक, मानसिक,सामाजिक,बौद्धिक व शारीरिक उन्नति कर सकता है ।
अष्टांग योग
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि । ।
अर्थात: यम, नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, धरना,ध्यान व सामधि-योग के बिना कोई भी व्यक्ति योगी नही बन सकता ।
यम :- अहिंसा सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह ये पाँच यम है । यम अर्थात जिसके अनुष्ठान से मन व इन्द्रियां अशुभ से हटकर शुभ में सलंग्न हो जाये ।
(क) अहिंसा :- पहला अपने मन वचन व कर्म से हिंसा करना दूसरा किसी दूसरे व्यक्ति से करवाना तीसरा हिंसा के लिए दूसरे को उकसाना इन तीनो प्रकार कि हिंसा से बचना, मन में भी किसी का अहित न सोचना, किसी को कडवा न बोलना आदि यह अहिंसा है ।
(ख) सत्य:- मन तथा वाणी में शुद्ध भाव का होना और उसी के अनुरूप कार्य करना सत्य है । किसी के जीवन कि रक्षा के लिए झूठ बोलना भी सत्य है सर्वहितकारी वाणी सत्य है तथा सत्य व्यक्ति का आभूषण है ।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये ।
औरन को शीतल करे, आप भी शीतल होय ।।
(ग) अस्तेय :- अस्तेय का अर्थ है चोरी न करना । जो अपनी नही ऐसी वास्तु जो दूसरे कि हो उस पर अपना अधिकार जमाना, छीन लेना या मन में ही ग्रहण करने कि लालसा यह भी चोरी है ।
(घ) ब्रह्मचर्य :- अपनी इंद्रियों व मन को विषयों से वासनाओ॓ से रागद्वेष से हटाकर परमात्मा में लगाने का नाम ब्रह्मचर्य । खान-पान, दृश्य, श्रवण, श्रृंगार, संसार व्यव्हार दर्शन, स्पर्शन आदि में संयम तथा मैथुन से बचना ब्रह्मचर्य है । अशुभ का दर्शन, स्पर्शन, भोग विलास युक्त स्थान पर एकांत सेवन, भाषण, विषय कथा, परस्पर क्रीडा, विषय का ध्यान तथा संग यह आठ प्रकार के मैथुन है ।
अब्रह्म्चारी शक्तिहीन, ओजोहीन तथा निस्तेण रहता है ।
(ड़) अपरिग्रह :- अपरिग्रह का अर्थ है आवश्यकता से अधिक सामग्री इकट्ठी न करना । जो कुछ भी परमात्मा ने हमे दिया है वायु जल धन-धान्यादि उसपर सबका समान अधिकार मनाते हुए जरूरत के अनुरूप संग्रह करना अपरिग्रह है, इसके विपरीत परिग्रह है । परमात्मा ने जो, हमे दिया है, उसमे संतुष्ट रहना चाहिए तथा दान सहयोग से जरूरतमंद कि मदद करना भी अनिवार्य है ।
२. यम नियम
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्रणिधान ये पाँच नियम है । नियम अष्टांग योग का दूसरा आधारभूत विशेष अंग है ।
(क) शौच :- शारीरिक व मानसिक शुद्धि को शौच कहते है षट्कर्म से शरीर कि भीतरी सफाई, ध्यान से ब्रह्म शुद्धि तथा ध्यान से मन बुद्धि व आत्मशुद्धि संभव है ।
(ख) संतोष :- पुरुषार्थ, निष्काम कर्म अथवा आसक्ति रहित कर्म करके जो कुछ प्रतिफल मिले उससे संतोष है । भगवान श्री कृष्णा ने गीता में कहा है :-
श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय 02 का श्लोक 48 के अनुसार
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते । ।
अर्थात :- हे धनंजय ! आसक्ति छोड़कर योग में स्थित होकर कर्म की सिद्धि (सफलता) या असिद्धि (असफलता) को सामान मानकर अपना कर्म कर । कर्म के सिद्ध होने या असिद्ध होने, दोनों ही अवस्थाओं में एक सामान रहने वाली समत्वबुद्धि का नाम ही योग है ।
(ग़) तप :- जीवन में जो भी बाधाएँ विघ्न कष्ट व संकट आये, राग-द्वेष रहित होकर सावधानी से आत्मभाव में स्थिर होकर उनको स्वीकार करना तथा अपने ध्येय (लक्ष्य) कि और निरंतर बढ़ते रहना तप है । कही और भी लिखा है कि
तपो न तप्तं वयमेव तप्ता: ।
अर्थात : तप नही तपा जाता हम स्वय तप जाते है । प्रतिकूलताओमें स्थिर रहना तप है और विचलित हो जाना स्वय तपना है ।
(घ) स्वाध्याय :- वेद , शास्त्र, दर्शन, उपनिषद् गीता, संतो के उपदेश, भजन आदि जो कुछ भी पढने योग्य हो अच्छा हो उसका अध्ययन श्रवण, मनन व चिन्तन करना स्वाध्याय है ।
(ड़) ईश्वर प्रणिधान :-
कर्मण्येवधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्म फलहेतुर्भूर्मा ते सड़्गोऽसत्व कर्मणि ।।२/४७।।
भगवान श्री कृष्ण बार-बार अनासक्त, नि:स्पृह कर्मफल कि इच्छा से रहित, योगस्थ होकर समर्पित भाव से कर्म करने के लिए प्रेरित कर रहे है यही ईश्वर प्रणिधान है ।
हमे उम्मीद है की आपको यम नियम के बारे में हम थोडा कुछ समझा पाए होंगे अगर अभी भी इस विषय पर कोई प्रश्न, जिज्ञासा या कोई सुझाव है तो नीचे कमेंट में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें |
सद्गुरुदेव जी के चरणों में कोटि कोटि दंडवत,
सद्गुरुदेव श्री जी, मेरे मन में इक चाहत है, आपके दर्शन
करूँ और आपका सानिध्य प्राप्त कर सकूँ,
आप अपनी कृपा से इस मुर्ख को कृतार्थ करें।
सद्गुरुदेव जी के चरणों मे कोटि कोटि दंडवत
षट्कर्म की व्याख्या का दान कीजिये गुरुदेव
आपका YouTube चैनल मैं बहुत शौक से देखता हूँ. आपकी depression के ऊपर series और उसे कैसे balance करना है और सात्विक, राजसिक और तामसिक का वर्णन बहुत अच्छा लगा. वहां से ये आपकी वेबसाइट के बारे मे पता चला. बहुत बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए. कोटि कोटि प्रणाम.
Mahaan jankari hai…
ईश्वर प्रणिधान को बराबर स्पष्ट नहीं किया गया है ।
आसन सुद्धि क्या है ध्यान में आगे न झुकें उसके लिए क्या करें
अवश्य ही आप को इस विषय पर विडियो देखने को जल्द ही मिलेगा
Guruji mera pet bhot kharab rehta hai mujhe apna ilaj karvana hai apko office kha hai