
विभिन्न प्रकार कि क्रियाओ जैसे आसन, प्राणायाम, बन्ध, षट्कर्म एवं मुद्राओ के विधिपूर्वक अभ्यास से शरीर को निर्मल एवं मन को वश में करना, बुद्धि को स्थिर व विवेकी बनाना हठयोग कहलाता है ।
हठयोग एवं राजयोग के मिलने से ही अष्टांग योग बना है । इसलिए शास्त्रों में कहा गया है :
हठ बिना राजयोगं राजयोगं बिना हठ: ।
न सिध्यति ततं युग्म निष्पत्त्यर्थं सैमभय्सेत ।।
अर्थात : हठयोगके बिना राजयोग सिद्ध नही होता तथा राजयोग के बिना हठयोग अपूर्ण है । इसका मतलब है कि अष्टांग योग के आठो अंगों के नियमो का पालन करना योगी के लिए अनिवार्य है।
हठयोग भगवान शिव का प्रिय है । उनकी परम्परा को चलाने वाले स्वामी गोरखनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, मीननाथ, चौरंगीनाथ, स्वात्माराम, भर्तृहरि एवं गोपीचंद तक नाथो ने इस परम्परा को जीवित रखा है और आगे भी योगी इस परम्परा का पालन कर रहे है ।
लोगो का मानना यह है कि हठयोग का अर्थ है ज़ोरदार व कठिन अभ्यास, किन्तु यह अर्थ बिल्कुल विपरीत है ।
ह शब्द सूर्यनाडी का प्रतीक है तथा ठ शब्द चन्द्रनाडीका प्रतीक है सूर्य और चन्द्र दोनों नाडीयो का योग ही हठ योग है । दायी नासिका को सूर्य तथा बायीं नासिका को चन्द्र स्वर कहा जाता है इन दोनों नाड़ियो के मध्य में प्रतिष्ठित है । सुषुम्ना नाडी हठयोग कि भाषा में इन तीनों को गंगा, यमुना, सरस्वती कहा जाता है ।
bhut acha guru gjai ho
[…] । तात्पर्य यह कि राजयोग प्रवेश के लिए हठयोग अनिवार्य है […]
[…] पुरुष को कर्म करने या कर्म न करने से कोई लाभ नही लेना […]