
दत्तात्रेय योगशास्त्र में मंत्रयोग, हठयोग, लययोग तथा राजयोग के रूप में योग के चार प्रकार बताए गये है ।आइये मंत्र योग पर कुछ चर्चा करें |
मंत्रयोग :- इष्टमंत्र अथवा गुरुमंत्र को विधि पूर्वक एक निश्चित समय तक अनुष्ठान करने से जपने से सिद्धियाँ साधक को प्राप्त हो जाती है । कहने का तात्पर्य की उनका वह मंत्र सिद्ध हो जाता है | मंत्र में परमात्मा कि शक्ति होती है । मंत्र ब्रह्म का स्वरुप है ।
मन को मनन कि शक्ति व एकाग्रता प्रदान करके, जप के द्वारा सभी भयो का विनाश करके, पूर्ण रक्षा करने वाले शब्दो को मंत्र कहा जाता है ।
किसी महा पुरुष ने कहा है
आलोऽयं सर्वशस्त्राणी विचार्य च पुन: पुन: ।
एकमेव सुनिष्पन्नं हरिर्नामैव केवलम् ॥
सर्वशास्त्रो का मंथन करने के बाद, बार-बार विचार करने के बाद, ऋषि मुनियो को जो एक सत्य हाथ लगा वह है भगवन्नाम ।
मन्त्रयोग (जपयोग) का वैज्ञानिक आधार मनोविज्ञान के विद्वानों ने अनेक प्रकार से प्रयोग करके खोज और छानबीन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य के मस्तिष्क में बार-बार जिन विचारो का उदय होता है वे विचार मस्तिष्क मे बार-बार अंकित हो जाते है उसी प्रकार के विचार मस्तिष्क में बार-बार चक्कर लगाते है ।
जो कार्य बार-बार किया जाए वह आदत बन जाता है धीरे-धीरे आदत स्वभाव और तत्पश्चात स्वभाव, संस्कार का रूप धारण कर लेते है।
मंत्र शब्द संस्कृत भाषा का है जिसका अर्थ है “सोचना” “धारण करना” “समझना” ”चाहना” ।
वास्तव में मंत्रयोग उद्देश्य अपने इष्ट का स्मरण है। श्री रामचरित्रमानस में नवधा भक्ति का वर्णन करते हुए भगवान श्री राम शबरी से कहते है कि:-
मंत्र-जाप मम दृढ विस्वासा ।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
मंत्र का जप और मुझमे दृढ विश्वास यह पांचवी भक्ति है ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि:
“जपयज्ञ” सबके लिए सुगम है ।
सात चक्रों व पाँच कोषो पर मंत्र का प्रभाव
हमारे शरीर में सात चक्र होते है । उनमे से नीचे के केन्द्रों में काम, घृणा, भय, इर्ष्या आदि रहते है । मंत्र के जप से जापक का भय निर्भयता में, घृणा प्रेम में, काम राम में बदलने लगता है ।
सर्वप्रथम मूलाधार चक्र मंत्रयोग से रूपांतरित होता है काम राम में परिवर्तित हो जाता है ।
इससे स्वाधिष्ठान केंद्र रूपान्तरित होने से चिंता निश्चिंतता में बदलने लगती है । तीसरे मणिपुर चक्र के रूपांतरण से रोगप्रतिरोधक शक्ति क्षमाशक्ति, शौर्यशक्ति आदि विकसित होने लगती है ।
सात बार ओऽऽऽऽऽऽम् के गुंजन से मालाधार में स्पंदन होता है और कई रोग कीटाणु भाग खड़े होते है।
इसी तरह अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार चक्र के रूपांतरण से अदभुत लाभ होते है।
सातों चक्रो के समान ही हमारे शरीर में पाँचकोषों पर मंत्र जप का असर होता है । मंत्र जप अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनंदमय इन पांचो कोषों में परमात्मा का ज्ञान प्रकट कर देता है । इस स्थूल शरीर (अन्नमय कोष) के भीतर है प्राणमाय कोष जब हम क्रोध करते है तो हमारे प्राणों कि लय बदल जाती है । भय, काम, चिंता आदि का भी प्राणों कि लय पर असर पढता है इसी तरह मंत्रजप का भी इसपर असर पढ़े बिना नही रहता । जब बुरी चीज का असर होता है जों की हमे महसूस भी होता है तो फिर अच्छी चीज का अच्छा असर हुए बिना नहीं रह सकता फर्क सिर्फ इतना है की अच्छी चीज का असर शुरू-शुरू में हमे बाहर से दिखाई नहीं देता या कम ही लोग उसे अनुभव कर पाते हैं |
प्राणमय कोष के भीतर है मनोमय कोष । यह सूक्ष्म है इसलिए मन को वश में करने के लिए मंत्रजप उपयोगी है । मनोमय कोष के अंदर विज्ञानमय कोष । विज्ञानमय कोष निर्णय करने में सहायक होता है । विज्ञानमय कोष में ही आनन्दमय कोष का उद्ग़म् स्थान है।
इसप्रकार मंत्रजप सात केन्द्रों एव पाँचो कोषों पर प्रभाव डालकर साधक को साधना पथ पर अग्रसर करते हुए साध्य कि प्राप्ति में भी सहायक होता है ।
Guru ji. Kon sa mantra padhna hai ?
Sw. Ji Namskar
Please tell us about Tratak, Dharna, Dhyan
Thank you