
वात अर्थात वायु एवं आकाश, पित्त अर्थात अग्नि एवं जल, कफ अर्थात जल एवं पृथ्वी | ये सब एक निश्चित अनुपात में हों तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है | यदि शरीर में इन तीनो का संतुलन बिगड़ जाए तो कई रोग हो जाते है | यहाँ वात से होने वाले मुख्य 80 प्रकार के वात रोग के नामों का वर्णन किया जा रहा है |
80 प्रकार के वात रोग
- अनिद्रा : नींद न आना |
- अक्षि व्युदास : नेत्रों का टेढ़ा होना |
- अक्षिभेद : आँखों में दर्द |
- अतिप्रलाप : बिना बात के निरर्थक बोलना |
- अरसज्ञता : रस का ज्ञान ना होना |
- अर्दित : मुंह का लकवा |
- अशब्द श्रवण : ध्वनि ना होते हुए भी शब्दों का सुनना |
- आक्षेपक : हाथ पैरों को जमीन पर पीटना व बार-बार उठाना, मस्तिष्क में वातनाड़ी दूषित होंने पर मिर्गी जैसे झटके आना |
- उच्चै: श्रुति : ऊंचा सुनना |
- उदरावेष्ट : पेट में एंठन होना |
- उदावर्त : पेट की गैस ऊपर की और आना |
- उरुसाद : उरुप्रदेश में अवसाद यानी शिथिलता का अनुभव होना |
- उरुस्तंभ : जानू हड्डी का जकड़ना | यदि दर्दनाशक तेल मलने से दर्द बड़े तो उरुस्तंभ वात रोग होता है वर्ना नहीं |
- एकाग घात : इसमें पेशी शिथिल हो जाती है |
- ओष्ठभेद : होंठो में दर्द |
- कंठोध्वंस : गला बैठ जाना |
- कर्णमूल : कान की जड़ में दर्द (कान के पीछे वाला हिस्सा कंठ से कुछ पूर्व का भाग तक ) कनफेड़ रोग इसी में होता है |
- कषायास्यता : मुहं कड़वा होना |
- कुब्जता : कूबड़ का होना |
- केशभूमिस्फुट : बालों की जड़ों में विकृति होना |
- खंजता : लंगड़ापन आना |
- गुदभ्रंश : गुदा बाहर निकलना |
- गुदा शूल : गुदा प्रदेश में दर्द |
- गुल्फ ग्रह : ( गुल्फ प्रदेश का जकड़ जाना ) एड़ी के आसपास सात हड्डियो के समूह को गुल्फ प्रदेश कहते है |
- ग्रध्रसि : सायटिका का दर्द | इसमें कमर के कूल्हे की हड्डी में होकर पैर तक एक सायटिका नाड़ी (ग्रध्रसि नाड़ी ) में सुई की चुभन जैसा दर्द होता है |
- ग्रीवास्तम्भ : गर्दन का जकड़ जाना |
- घ्राणनाश : गंध का ज्ञान ना होना |
- चित्त अस्थिरता : चित्त स्थिर न रहना |
- जंभाई : उबासी आना |
- जानु विश्लेश : जानू की संधियों का शिथिल हो जाना |
- जानु भेद : घुटनों के ऊपर वाली हड्डी | ये दोनों पैरों पर 1-1 होती है | इसमें टूटने जैसा दर्द |
- तम: या तमदोष : झुंझलाहट होना |
- तिमिर : आंखो से धुंधला व कम दिखाई देना |
- त्रक ग्रह : पृष्ठ ग्रह-पीठ व नीचे तक बैठक वाली स्थान की हड्डी त्रिकास्थी में दर्द होना |
- दंडक : शरीर में वात वृद्धि से पूरे शरीर की मांसपेशियां डंडे की तरह स्थिर हो जाती है | इसे दंडापतानक कहते है |
- दन्त भेद : दांतों में पीड़ा |
- दन्तशैथिल्य : दांतों का हिलना |
- दिल बैठने जैसा महसूस होना |
- नखभेद : नाखूनो का टूटना |
- नेत्रशूल : आंखो में दर्द होना |
- पांगुल्य : लंगड़ापन |
- पादभ्रंश : पैरों पर नियंत्रण ना हो पाना |
- पादशूल : पैरों में दर्द होना |
- पादसुप्तता : पैरों का सुन्न होना |
- पाश्र्वमर्द : पाश्र्व प्रदेश में मर्दन के समान पीड़ा होना |
- पिडिकोद्वेषटन : पैर की पिंडलियों में एंठन जैसा दर्द |
- बहरापन : कान से सुनाई न देना या बहुत कम सुनाई देना |
- बाक्संग : आवाज़ बंद होना |
- बाहूशोष : भुजा से अंगुली तक मासपेशियों में दर्द, एंठन व जकड़न | हाथ ऊपर ना उठना |
- भ्रम : चक्कर आना |
- भ्रूव्य दास : भौंहों का टेढ़ा होना |
- मंथा स्तम्भ : गर्दन के पीछे लघु मस्तिष्क के नीचे के हिस्से में जकड़न व पीड़ा |
- मुखशोष : मुहं का सूखना |
- मूकत्व : गूंगापन / बोलने में असमर्थ |
- ललाट भेद : आँखों के ऊपर वाले हिस्से में पीड़ा |
- वंक्षणानाह : वंक्षण प्रदेश में बंधन के समान पीड़ा होना |
- वक्ष:स्तोद : छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा |
- वक्षोद्रघष (वक्षप्रदेश में घिसने के समान पीड़ा ) |
- वक्षोपरोध : वक्ष:स्थल की गतिया यानी फुफ्फुस व हृदय गति में रूकावट का अनुभव |
- वत्रम संकोच : नेत्र में सूजन व पलकें सिकुड़ जाती है जिससे आंखे खोलने में परेशानी होने लगती है |
- वत्रम स्तंभ : आंखों की पलकें ऊपर-नीचे नहीं होना |
- वात खुड्डता : पैर व जांघ की संधियो में वात जन्य वेदना का होना, पिंडली वाली दो हड्डियां, घुटनों के नीचे वाली दो हड्डियों ( जंघास्थि और अनुजंघास्थि ) टखने से एड़ी तक के हिस्से के जोड़ो में दर्द और लंगड़ापन |
- वामनत्व : उल्टी होना |
- विडभेद : मल स्थान के आसपास तोड़ने जैसी पीड़ा |
- विपादिका : हाथ-पैर फटना |
- विषाद्र : दुखी रहना |
- वृषणोत्क्षेप ( अंडग्रंथियो का ऊपर चढ़ जाना ) |
- वेपथु : कंपकंपी होना |
- शंखभेद : कनपटी में दर्द |
- शरीर का काला होना |
- शरीर का रंग लाल होना |
- शरीर में परुषिता : शिथिलता आना |
- शरीर में रूक्षता : रूखापन |
- शिरशूल : सिरदर्द |
- शेफ स्तंभ : मुत्रेंद्रियो में जकड़ाहट |
- श्रोणिभेद : कूल्हे वाली हड्डी में तोड़ने जैसा दर्द |
- सर्वांगघात : यह जन्मजात मस्तिष्क का रोग है |
- हनुभेद : ठोड़ी में पीड़ा |
- हिक्का : हिचकी |
- हृदद्रव : हृदय में द्रवता अर्थात शीघ्रता से गति का होना |
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Guruji is sunday facebook par KUNDALINI Jaagran ke bare me detail se btaiyega plz mujhe apse janna hai is bare me !!!!
We will farward your message to NityaShree
Thanks for contacting us
Guruji mjhe frequent urination ki problem h.. Ek saal se..meri vaat pitt prakriti h.. Apaan vaayu bigad gya h toh frequent urination ho ra h kaafi tym se.. Pr pitt prakriti b hone k karan main chandraprabhavati leti hu jaise ki aapne btaya ta toh garmi kr jati h wo.. Isliye main wo le ni pa ri.. Plz upaay btaiye ?bahut weakness aa gi h..
Bahu Mutrantak Ras is better to Consume in frequent urination while increasing pitta.
for more queries solutions kindly contact with our Doctors +91 7097979701
Namashkaram!mai 26 yrs ki CA student hu..aur vatt rog boht zyada hai …in 80 me se 6 cheezein hi merko hoti hai..par boht zyada ..11)pett ki gas upar uthna..sir me boht dard 33) timir yani foogineess.68)hath pair fatna 74) sirdard boht zyada…and sir ki kuchh naado me boht zyada mirgi jaise shocks aana…aur dakaar aana……i request u ..iske alawa merko naxlaa rehta hai..iam overweight 86 kgs..dosha anaylysis me i got 6 of vatta..1 of pitta and 8 of kapha..plz help ..its a request
Question continued….naak se running water hota hai ..nazlaa but kabhi bhi kaffa muh se nahi aata….kuchh bhi garm pravati ka khaun..adrak bhi..to dakaar aur zyada bhhad jati hai…kaafi ayurvedic homepathic doctors ko bhi dikhaya…kya swami ji tak meri baat jaa sakti hai ..plz
Kaf rog ka list banana