
आँखों की रौशनी बढाने के लिए हरड़ बीज निकाली हुई १०० ग्राम, बहेड़ा बीज निकाला हुआ २०० ग्राम तथा बिना बीज आंवला ३०० ग्राम इन तीनो को लेकर पीस कर मुलायम बारीक चूर्ण कपड़छन करके रख लें | रोजाना सुबह इस चूर्ण का एक चम्मच (४-५ ग्राम) लेकर उसमें अपनी हिम्मत व जरुरत अनुसार १ से २ रत्ती (१२५ से २५० मिलीग्राम) अभ्रक भस्म मिलाकर इन दोनों चीज़ों को शहद में मिलाकर सुबह खाली पेट चाट लें तथा कम से कम ४०-५० फिर कुछ न खाएं | शहद उतना मिलाना है जितने शहद में उपरोक्त औषधि अच्छे से मिल जाए | अवधि कुछ माह लगातार आवश्यकतानुसार |
बल-वीर्य के लिए विदारीकन्द (सूखी शकरकंद) का चूर्ण या अश्वगंधा जड़ चूर्ण एक चम्मच लेकर उसमें १ से २ रत्ती (१२५ से २५० मिलीग्राम) अभ्रक भस्म मिलाकर इन दोनों चीज़ों को गुनगुने दूध से शाम को या रात को सोने से कुछ देर पहले अंतिम आहार के रूप में लेने से बल और वीर्य तेजी से बढ़ता है | हालाँकि विदारीकन्द या अश्वगंधा भी लाभ करते हैं लेकिन अभ्रक भस्म को इनमें मिला कर लेने से जो लाभ ये महीनों लेने से करते हैं वही लाभ कुछ दिनों में ही कर देते हैं | अवधि कुछ दिन से कुछ माह तक लगातार आवश्यकतानुसार |
स्नायु दुर्बलता (नर्वस सिस्टम की कमजोरी) के लिए सिद्ध मकरध्वज आधी रत्ती (६०-६५ मिलीग्राम) में अभ्रक भस्म १ रत्ती मिलाकर एक-दो चम्मच मक्खन या मलाई जो सरलता से उपलब्ध हो उसी में मिलाकर ले लो |
कुष्ठ रोगों, चर्म रोगों या रक्त विकार (खून की खराबी) में खादिरारिष्ट (४-४ चम्मच) बराबर जल सहित में अभ्रक भस्म एक से दो रत्ती मिलकर सुबह शाम लेने से ऐसे रोग जल्दी ठीक होते हैं |
पेट के रोगों में कुमार्यासव बहुत लाभकारी है और उसमें भी ऊपर खादिरारिष्ट की ही तरह अभ्रक भस्म मिलकर लेने से कुमार्यासव पेट रोगों में ज्यादा जल्दी लाभ करता है |
रक्ताणुओं / खून की कमी में जब खून तक चढ़ाने की जरूरत महसूस हो उस स्थिति में दो रत्ती अभ्रक भस्म के साथ दो रत्ती गिलोय सत्व लेकर दोनों को एक साथ शहद में मिलाकर सेवन करवाने से बहुत जल्द नए रक्त कण तेज़ी से बनने लग जाते हैं और कुछ ही सप्ताह के सेवन से खून की कमी पूरी हो जाती है | यही काम पुनर्नवादि मंडूर और अमृतारिष्ट के संयुक्त अनुपान से अभ्रक भस्म देने से भी हो जाता है |
वात के दर्द में १ रत्ती अभ्रक भस्म को ३०-४० मिलीलीटर अजवायन के अर्क के अनुपान से एक कप गुनगुने पानी में अर्क मिलाकर उस अर्क से अभ्रक भस्म सुबह शाम फांक लेने से भी वात के दर्दों में आराम मिलता है बशर्ते आप वात रोग में क्या खाना है क्या नहीं इसका ध्यान अवश्य रखें |
पुराने श्वास रोग में भी अभ्रक भस्म एक रत्ती को एक तौला (१०-१२ ग्राम) यानि लगभग एक चम्मच च्यवनप्राश में अच्छी तरह से मिलाकर भोजन के बाद शाम को या सुबह चटाने से बहुत लाभकारी है | इसमें यदि सामर्थ्य हो तो आधी रत्ती स्वर्ण भस्म भी साथ में मिला सकते हैं |
प्रसूता रोग (कमजोरी, खून की कमी पेट दर्द या सारे शरीर का दर्द) सूजन, पीरियड के दौरान दर्द, हाथ पैर ठन्डे रहना आदि में एक से दो रत्ती मात्रा अभ्रक भस्म को लेकर दशमूल क्वाथ या फिर दशमूलारिष्ट के साथ मिलाकर देने से इन रोगों में जल्दी आराम आता है |
अभ्रक भस्म के सेवन के लिए किसी ऋतु विशेष का प्रतिबन्ध नहीं होता | किसी भी मौसम में इसका सेवन किया व करवाया जा सकता है |
इसके इलावा भी अभ्रक भस्म के बहुत सारे उपयोग व अनुपान हैं जिन्हें बहुत जल्द ही इसी आर्टीकल के साथ जोड़ दिया जाएगा | आप कुछ समय प्रतीक्षा करें | धन्यवाद
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आनंदम आयुर्वेद
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